[A] राजस्थान का इतिहास
- प्रमुख पुरातात्विक स्थल एवं प्राचीन सभ्यताएं
VI गिलूण्ड
- गिलूण्ड, राजसमन्द जिले में बनास नदी के तट पर स्थित है I
- यह आहड़युगीन सभ्यता का ही स्थल है I
- यहाँ से ‘ताम्रयुगीन सभ्यता’ के अवशेष मिले हैं I
- गिलूण्ड से 100X80 फीट आकार के एक भवन के अवशेष मिले हैं I भवन का निर्माण ईंटों से हुआ है I
जबकि अन्य मकानों के अवशेषों में कच्ची दीवारें तथा चूने का प्लास्टर मिला है I
- गिलूण्ड से काले एवं लाल रंग (B-R) के मृदभाण्ड मिले हैं I
VII नोह
- यह स्थल भरतपुर जिले से 6 किमी. दूर स्थित है I
- नोह से ‘पांच सांस्कृतिक युगों के अवशेष’ मिले हैं I
- इस स्थल का उत्खनन डॉ.डेविडसन एवं रतनचंद्र अग्रवाल द्वारा 1963-64 ईस्वी में किया गया I
- नोह से चित्रित स्लेटी एवं गेरू (P-G-W) मृदभाण्ड मिले हैं I
- तांबे के सिक्के, कुषाण एवं मौर्य कालीन वस्तुओं के अवशेष भी मिले हैं I
- प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि 12वीं सदी ई.पू. से यहाँ लोहे का प्रयोग होता आया है I
VIII लाछूरा
- ‘ताम्रयुगीन सभ्यता’
- भीलवाडा जिले की आसीन्द तहसील में स्थित
- 1998 ईस्वी में बी.आर.मीणा द्वारा इस स्थल का उत्खनन किया गया I
- इस स्थल से 700 ई.पू. से 2000 ईस्वी तक की सभ्यताओं के प्रमाण मिले हैं जिन्हें चार कालों में वर्गीकृत किया गया है I
- उत्खनन में मिट्टी की मानव आकृतियाँ, तांबे के बर्तन, काले एवं लाल (B-R) मृदभाण्ड मिले हैं I
IX ओझियाना
- ‘ताम्रयुगीन सभ्यता’
- भीलवाडा जिले में बदनौर के पास स्थित
- आहड़युगीन सभ्यता का ही एक स्थल
- वर्ष 2000 ईस्वी में बी.आर.मीणा एवं आलोक त्रिपाठी द्वारा इस स्थल का उत्खनन किया गया था I
- यह आहड़ सभ्यता का एकमात्र स्थल है जो किसी नदी के किनारे न होकर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है I
- प्राप्त अवशेष : गाय की मिट्टी की मूर्ति
अनेक प्रकार एवं आकार की बैलों की मूर्तियाँ जिन पर सफ़ेद रंग से चित्रकारी की गई है
ये सफ़ेद चित्रित बैल ‘ओझियाना बुल’ कहलाते हैं I
- प्राप्त अवशेषों से सभ्यता के तीन चरणों का पता चलता है :
प्रथम चरण : कृषकों की अधिकता
पहाड़ी पर कच्चे निवास
सफ़ेद चित्रकारी युक्त लाल-काले मृदभाण्ड
द्वितीय चरण : भवन निर्माण में ईंट पत्थरों का प्रयोग
तृतीय चरण : मृदभाण्डो को पकाने की अलग विधि
X नगर
- टोंक जिले से 35 किमी. दूरी पर स्थित क़स्बा
- उत्खनन
1942-43 ईस्वी में श्रीकृष्ण देव द्वारा
2008-09 ईस्वी में टी.जे. अलोन द्वारा
- प्राचीन नाम ‘मालव नगर’, ‘करकोटा नगर’
- यह स्थल प्राचीन मालव जनपद की राजधानी था I
- नगर से 6 हज़ार मालव सिक्के तथा भारी संख्या में आहत सिक्के मिले हैं I
- उत्खन में गुप्तकालीन लेख भी मिले हैं I
- यहाँ से उत्खनन में ‘सिंहावरूढ़ देवी दुर्गा का प्राचीनतम अंकन’ प्राप्त हुआ है जो की ‘शुंगकालीन कला’ का उदाहरण है I
XI रैढ
- टोंक जिले की निवाई तहसील में ढील नदी के किनारे स्थित
- उपनाम ‘प्राचीन भारत का टाटानगर’
- 1938-40 ईस्वी में डॉ केदारनाथ पुरी द्वारा उत्खनन किया गया I
- यहाँ से ‘एशिया का सिक्कों का सबसे विशाल भण्डार’ मिला है I
- चाँदी की सैकड़ों आहत मुद्राएँ मिली हैं I
- एक सीसे की मुद्रा मिली है जिस पर ब्राह्मी लिपि में ‘मालव जनपदस’ अंकित है I
- यहाँ से प्राप्त सभी कलाकृतियों पर ‘मथुरा कला’ का प्रभाव है I
- रैढ से ‘सेनापति’ एवं ‘मित्र सिक्कों’ की प्राप्ति भारतीय मुद्राशास्त्र की एक बड़ी घटना है I
XII नगरी
- प्राचीन नाम ‘माध्यमिका’
- शिवी जनपद की राजधानी
- 1904 ईस्वी में डॉ भंडारकर द्वारा उत्खनन
- यहाँ से गुप्तकालीन कला के अवशेष एवं शिवी जनपद के सिक्के मिले हैं I
XIII जोधपुरा
- जयपुर जिले में स्थित
- यहाँ से कुषाण एवं शुंग कालीन अवशेष मिले हैं I
- अयस्क से लोहा प्राप्त करने की एक भट्टी मिली है I
XIV सुनारी
- खेतड़ी (झुंझुनू जिला) के समीप स्थित
- यहाँ से ‘लोहा बनाने की प्राचीनतम भट्टियाँ’ मिली हैं I
XV सोंथी
- बीकानेर में स्थित
- ‘कालीबंगा प्रथम’ के नाम से विख्यात
XVI तिलवाड़ा
- बाड़मेर में स्थित
- यहाँ से लूनी नदी के किनारे 500-200 ई.पू. तक की अवधि में विकसित सभी सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं I
XVII नालियासर
- सांभर (जयपुर) में स्थित
- चौहान युग से पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं I
XVIII जूनाखेड़ा
- पाली जिले के नाडोल नामक स्थान के समीप स्थित
- यह प्रथम चौहान कालीन नगर है जहाँ से एक सुनियोजित आवासीय बस्ती के प्रमाण मिले हैं I
- अब तक शालभंजिका ( साल वृक्ष की दाल को तोडती हुई स्त्री ) की प्रस्तर प्रतिमाएं ही मिली हैं किन्तु जूनाखेड़ा से मिट्टी का एक बर्तन मिला है जिस पर शालभंजिका अंकित है I यह अपने आप में प्रथम उदाहरण है I